सर्वगुण पूर्णता All rounder
1
जो सब गुण हैं पालते, समझ योग्य कर्तव्य ।
उनकों अच्छे कार्य सब, सहज बने कर्तव्य ॥
2
गुण-श्रेष्ठता-लाभ ही, महापुरुष को श्रेय ।
अन्य लाभ की प्राप्ति से, श्रेय न कुछ भी ज्ञेय ॥
3
लोकोपकारिता, दया, प्रेम हया औ’ साँच ।
सुगुणालय के थामते, खंभे हैं ये पाँच ॥
4
वध-निषेध-व्रत-लाभ ही, तप को रहा प्रधान ।
पर-निंदा वर्जन रही, गुणपूर्णता महान ॥
5
विनयशीलता जो रही, बलवानों का सार ।
है रिपु-रिपुता नाश-हित, सज्जन का हथियार ॥
6
कौन कसौटी जो परख, जाने गुण-आगार ।
है वह गुण जो मान ले, नीचों से भी हार ॥
7
अपकारी को भी अगर, किया नहीं उपकार ।
होता क्या उपयोग है, हो कर गुण-आगार ॥
8
निर्धनता नर के लिये, होता नहिं अपमान ।
यदि बल है जिसको कहें, सर्व गुणों की खान ॥
9
गुण-सागर के कूल सम, जो मर्यादा-पाल ।
मर्यादा छोड़े नहीं, यद्यपि युगान्त-काल ॥
10
घटता है गुण-पूर्ण का, यदि गुण का आगार ।
तो विस्तृत संसार भी, ढो सकता नहिं भार ॥
जो सब गुण हैं पालते, समझ योग्य कर्तव्य ।
उनकों अच्छे कार्य सब, सहज बने कर्तव्य ॥
2
गुण-श्रेष्ठता-लाभ ही, महापुरुष को श्रेय ।
अन्य लाभ की प्राप्ति से, श्रेय न कुछ भी ज्ञेय ॥
3
लोकोपकारिता, दया, प्रेम हया औ’ साँच ।
सुगुणालय के थामते, खंभे हैं ये पाँच ॥
4
वध-निषेध-व्रत-लाभ ही, तप को रहा प्रधान ।
पर-निंदा वर्जन रही, गुणपूर्णता महान ॥
5
विनयशीलता जो रही, बलवानों का सार ।
है रिपु-रिपुता नाश-हित, सज्जन का हथियार ॥
6
कौन कसौटी जो परख, जाने गुण-आगार ।
है वह गुण जो मान ले, नीचों से भी हार ॥
7
अपकारी को भी अगर, किया नहीं उपकार ।
होता क्या उपयोग है, हो कर गुण-आगार ॥
8
निर्धनता नर के लिये, होता नहिं अपमान ।
यदि बल है जिसको कहें, सर्व गुणों की खान ॥
9
गुण-सागर के कूल सम, जो मर्यादा-पाल ।
मर्यादा छोड़े नहीं, यद्यपि युगान्त-काल ॥
10
घटता है गुण-पूर्ण का, यदि गुण का आगार ।
तो विस्तृत संसार भी, ढो सकता नहिं भार ॥
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