याचना-भय Fear of supplication
याचना-भय
1
जो न छिपा कर, प्रेम से, करते दान यथेष्ट ।
उनसे भी नहिं माँगना, कोटि गुना है श्रेष्ठ ॥
2
यदि विधि की करतार ने, भीख माँग नर खाय ।
मारा मारा फिर वही, नष्ट-भ्रष्ट हो जाय ॥
3
‘निर्धनता के दुःख को, करें माँग कर दूर’ ।
इस विचार से क्रूरतर, और न है कुछ क्रूर ॥
4
दारिदवश भी याचना, जिसे नहीं स्वीकार ।
भरने उसके पूर्ण-गुण, काफी नहिं संसार ॥
5
पका माँड ही क्यों न हो, निर्मल नीर समान ।
खाने से श्रम से कमा, बढ़ कर मधुर न जान ॥
6
यद्यपि माँगे गाय हित, पानी का ही दान ।
याचन से बदतर नहीं, जिह्वा को अपमान ॥
7
याचक सबसे याचना, यही कि जो भर स्वाँग ।
याचन करने पर न दें, उनसे कभी न माँग ॥
8
याचन रूपी नाव यदि, जो रक्षा बिन नग्न ।
गोपन की चट्टान से, टकराये तो भग्न ॥
9
दिल गलता है, ख्याल कर, याचन का बदहाल ।
गले बिना ही नष्ट हो, गोपन का कर ख्याल ॥
10
‘नहीं’ शब्द सुन जायगी, याचक जन की जान ।
गोपन करते मनुज के, कहाँ छिपेंगे प्राण ॥
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