भगवान का सामर्थ्य अपने में आ जाये Be with God

भगवान का सामर्थ्य अपने में आ जाये

वल्लभाचार्य महान संत हो गए…वो यमुना तट पर विचरण करते करते आगरा के पास आये तो किसी ने बताया की आगरा के पास एक सूरदास रहेते..बहोत अच्छा भजन गाते…वल्लभाचार्य को पता चला तो उस सूरदास कवी के पास गए..बोले, ‘कवी हो कुछ सुनाओ!’
कवी सूरदास ने अपना तान तंबोरा उठाया और गाने लगे…
हे हरी मैं तो सब पतितो से हूँ पतित..
सब दीनो से हूँ दीन …इस तरह गिड़ गिड़ा रहे थे…

वल्लभाचार्य उठे और उस सूरदास महाराज का सर पकड़ के हीला दिया…. “ये क्या बोलते हो? भगवान का गुण गाने की बजाय अपने दुर्गुण क्यों गाते हो? भगवन आप ज्ञान स्वरुप हो..चेतन रूप हो..ऐसा गाओ ना… अंतर चक्षु जगाओ ना…बाहर से अंधे हो, भीतर से भी अंधे होने जा रहो हो! अपने लिए क्या गाते हो? भगवान कैसे है ये गुणगान करो ना..तो भगवान का सामर्थ्य अपने में आ जाये, अन्दर का भगवत रस आ जाये..” इस प्रकार खूब डांटा वो सूरदास कवी को… सूरदास के सर में ऐसा परिवर्तन हुआ की ज्ञान चक्षु खुल गए!
अंतर का परिवर्तन हो गया!..उसी समय भीतर की आँख खुल गयी..!
ऐसी खुली की आगरा में बैठे ये सूरदास ब्रिन्दावन के बांके बिहारी जी का सिंगार हूब हु वर्णन करते की बांके बिहारी जी ने कौन से रंग का क्या पहेना है हूब हु वर्णन करते…
आज श्रीकृष्ण भगवान ने ये वेश किया है.. आज पित वर्ण का पीताम्बर है..कौन से फूलो का सिंगर है..वर्णन करते..लोगो को आश्चर्य होता की सूरदास तो कभी ब्रिन्दावन में गए नहीं..गए तो भी आँखों से देख नहीं पायेंगे.. तो सूरदास कैसा वर्णन करते?
किसी ने सोचा सुन सुन कर कल्पना करते होंगे…सूरदास की परीक्षा लेने के लिए एक दिन ऐसा किया की बांके बिहारी जी को कोई वस्र नहीं पहेनाया और सूरदास को पूछा की आज कौन सा सिंगार किये है बताओ…
तो सूरदास जी गाने लगे.. सभी मनुष्य तो कभी काम का वस्त्र पहेनाते कभी क्रोध का
लेकिन मेरे हरी तो आज है नगम नंगा …ह्रदय में बहेती है प्रेम की गंगा…
लोगो का आश्चर्य हुआ की सूरदास को कैसे पता चला?
ऐसा वर्णन करे की लोग दंग रहे गए…
आप के अन्दर दिव्य चक्षु है… दिव्य ज्ञान जागृत करो…

Comments

Popular posts from this blog

अशक्य ही शक्य करतील स्वामी ।

पंचप्राण हे आतुर झाले, करण्या तव आरती

लागवडीचे अंतराप्रमाणे एकरी किती झाड बसतील ह्याचे गणित असे कराल!