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देश में पांच नवम्बर को एक अनोखी घटना होने जा रही है। देश में एक सोने का सिक्का लांच होने जा रहा है, जिसको लांच करेंगे देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी। आखिर ये घटना असाधारण या अनोखी क्यों है, उसके लिए बस इतना जान लीजिए कि वो आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री होंगे जो कोई सोने का सिक्का लांच करेंगे वो भी सरकारी।

दरअसल सिक्के या मुद्रा हमेशा से इतिहास, राजनीति और अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में अहम भूमिका अदा करने के साथ साथ शासक की मनोवृत्ति या अहम को दर्शाते आए हैं। अक्सर पुराने राजा कोई जीत हासिल करते थे, तो उसके उपलक्ष्य में नया सिक्का जारी कर देते थे, अकबर ने असीरगढ़ के किले पर जीत के बाद बाज की आकृति का सिक्का जारी किया था। कोई राजा किसी दूसरे राजा पर जीत हासिल करता था, तो उसके सिक्कों पर ही अपना नाम या तस्वीर गुदवाकर दोबारा जारी कर देता था, इतिहासकार उन्हीं सिक्कों से अंदाजा लगाते आए हैं कि किस शासक ने किस पर विजय पाई होगी। हुमायूं ने एक भिश्ती को अपनी जान बचाने के लिए एक दिन का राजा बनाया तो उसने चमड़े का सिक्का जारी किया, जैसी कई कहानियां बिखरी पड़ी हैं।

जिस तरह से आज मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति की चर्चा होती है, उन दिनों मुस्लिम शासक हिंदू तुष्टिकरण की कोशिशें करते थे। सबसे पहले ये काम किया मौहम्मद गौरी ने, जिसने एक तरह से दिल्ली सल्तनत की नींव रखी, जीत हासिल की, कुछ दिन शासन किया और फिर उसे अपने देश में वापस लौटना पड़ा, कुतुबुद्दीन ऐबक को अपना प्रतिनिधि शासक बनाकर वापस लौट गया। लेकिन जब शुरू में उसे लगा था कि भारत में रहना पड़ेगा तो उसने यहां की हिंदू जनता से रिश्ते सुधारने के लिए एक सिक्का जारी किया था। जिसमें एक तरफ हिंदुओं के लिए धनधान्य की देवी मां लक्ष्मी की प्रतिमा उकेरी हुई थी और दूसरी तरफ नागरी में उसका नाम गुदा था। ऐसा ही प्रयास एक बार अकबर ने किया था, उसने राम सिया के नाम पर एक सिक्का जारी किया था। चांदी का इस सिक्के पर राम और सीता की तस्वीरें उकेरी गई थीं और दूसरी तरफ कलमा खुदा हुआ था। आज इरफान हबीब जैसे इतिहासकार इस सिक्के जैसी कुछ बातों के आधार पर अकबर को साम्प्रदायिक सौहार्द का प्रतीक बताते हैं। हालांकि भारत की देशी जनता से रिश्ते मजबूत करने के लिए इस तुष्टीकरण की शुरूआत तो इंडो यूनानी शासकों के समय से ही हो गई थी, उन्होंने बुद्ध, शिव और कृष्ण की आकृति वाले कई सिक्के चलाए थे, जिनको हेराक्लीज जैसे यूनानी नामों से वो लोग सम्बोधित करते थे।

जबकि कुषाण राजा कनिष्क ने सबसे पहले सही तरीके से सोने के सबसे ज्यादा शुद्ध सिक्के भारत में चलाए थे, मथुरा और गांधार में काफी मात्रा में वो सिक्के मिले हैं। आज के इतिहासकार जहां जहां ये सिक्के मिले हैं, उन इलाकों को इस आधार पर कनिष्क के राज्य में शामिल करते हैं। लेकिन अगर विदेशी सिक्के मिलते हैं, तो इसको व्यापार से जोड़ दिया जाता है। मसलन साउथ इंडिया में रोमन सामाज्य के शासकों के सिक्के पाए गए हैं, इस आधार पर ये माना जाता है कि रोम से हमारा व्यापार अच्छा था।

इसी आधार पर सिंधु घाटी सभ्यता से मिली सीलों को भी सिक्के या मुद्रा मानने के प्रयास कई इतिहासकारों ने किए हैं, लिपि अभी तक पढ़ी नहीं जा सकी तो कुछ स्पष्ट भी नहीं हो सका। ये ठीक है कि सिक्कों से पहले व्यापार में लेन देन वस्तु विनिमय के आधार पर यानी गेंहू के बदले औजार, या दूध के बदले फल दे देना जैसा होता होगा, सोने चांदी जैसी धातुएं बड़ी सामग्री का भुगतान करने के लिए इस्तेमाल होती होंगी। लेकिन रास्ता शायद सुझाया व्यापारिक श्रेणियों ने ही, उन्होंने अपनी मुद्राएं शुरू कीं। धीरे धीरे शासकों को भी समझ आने लगा कि वस्तु विनिमय से काम नहीं चलने वाला। चाणक्य के अर्थशास्त्र से पता चलता है कि इस व्यवस्था में खामियों के चलते ही शासन ने अपने सिक्के शुरु किए थे। लेकिन मौर्य शासकों या नंद शासकों को उस वक्त तारीखों या अपनी आकृति वाले सिक्कों को शुरू करने की नहीं सूझी, पांच आकृतियों को गुदवाकर सिक्के तैयार करवाए। चांदी, कॉपर आदि के सिक्के बनाए गए। चंद्र, सूर्य, पहाड़ी आदि आकृतियां इन सिक्कों पर गुदवाए गए। इन सिक्कों को पंचमार्क सिक्के कहा गया। इतिहास में सबसे पुराने सिक्कों के तौर पर इनकी गिनती होती है।

उस वक्त सम्राट अशोक को भी नहीं सूझा कि उनकी अशोक की लाट पर जो चार शेर लगे होते हैं, उनको ही सिक्कों पर गुदवा लिया जाए। लेकिन अब मोदी वही करने जा रहे हैं। इसकी भी राजनीति समझनी होगी। पहले अंग्रेजों तक ने अशोक की लाट वाले नोट जारी किए थे, लेकिन धीरे धीरे गांधीजी ने उनकी जगह ले ली। अब ना मुस्लिम तुष्टिकरण होगा ना हिंदू तुष्टिकरण, बल्कि बौद्ध धर्म को अपना लेने वाले सम्राट अशोक की लाट मोदी के पहले सोने के सिक्के पर अंकित होगी। हालांकि मोदी सोने के केवल दो तरह के सिक्के लांच करेंगे एक दस ग्राम का और एक केवल पांच ग्राम का। वो भी पहली खेप में केवल पचास हजार सिक्के ही बाजार में उपलब्ध होंगे, दीवाली के ठीक पहले इनके हाथों हाथ बिकने की उम्मीद है।

लेकिन केवल पचास हजार ही क्यों? इसको समझने के लिए पहले सिक्कों के अर्थशास्त्र को भी ढंग से समझना होगा। कनिष्क को भारत में सबसे शुद्ध सोने के सिक्के जारी करने के लिए भी जाना जाता है। लेकिन गुप्त युग जिसे भारतीय प्राचीन इतिहास में स्वर्ण युग के तौर पर लिखा पढ़ा जाता है, उसकी भी हिम्मत नहीं पड़ी कि सोने के इतने शुद्ध सिक्के जारी कर सके। गुप्त शासकों ने सबसे ज्यादा सोने के सिक्के जारी किए, इसमें कोई संदेह नहीं लेकिन उनका क्वालिटी में लगातार गिरावट आती रही। आखिरी शासकों के वक्त तो सोने की मात्रा इनमें काफी कम हो गई।

दरअसल वक्त का पुकार थी कि मानक मुद्रा जारी की जाए, लेकिन मजबूत सत्ता, एकसार अर्थव्यवस्था और दमदार शासक के बिना वो मुमकिन नहीं था, अगर कोई था भी तो उसके पास दूरदृष्टि नहीं थी। गुप्त शासक चंद्रगुप्त प्रथम, समुद्रगुप्त और चंद्रगुप्त विक्रमादित्य मजबूत थे, दमदार थे, काफी बड़े इलाके पर उनका राज्य था, लेकिन वो समय से काफी आगे की नहीं सोच पाए।

दूरदृष्टि थी तो मोहम्मद तुगलक के पास। वो अपने समय से सैकडों साल पहले की सोचता था तो उसे एलफिंस्टन जैसे इतिहासकार ने पागल तक लिख दिया। लेकिन हकीकत ये थी कि उसने काफी दूर की सोची। क्यों सिक्के को तोलकर ही या सोने का है या चांदी का इस आधार पर उसकी कीमत का अंदाजा लगाया जाए, क्यों ना सिक्के की जो कीमत घोषित की जाए, वहीं मान ली जाए। उसने मानक मुद्रा चलाई, लेकिन उसके अधिकारी ढंग से लागू नहीं कर पाए। जैसा कि बरनी लिखता है कि हर हिंदू का घर टकसाल बन गया। यानी उसकी मानक मुद्रा जिसकी कीमत ज्यादा थी वो कम लागत में घर घर में बनने लगा, कम में बनता और ज्यादा कीमत मार्केट में मिलती। मानो घर घर में आज के दौर में नोट छापने की मशीन लगा दी जाए। काफी घाटा हुआ और उसे अपना फैसला वापस लेना पड़ा। हालांकि ऐसा उसने चाइनीज की कागज की मुद्रा के बारे में सुनकर किया था। मुगलों तक ने ऐसा आगे करने की जहमत नहीं उठाई।

मुगलों के काल में हालांकि अर्थव्यवस्था पर उनकी पकड़ मजबूत थी, सोने के सिक्कों की, चांदी के सिक्कों की टकसालें अलग अलग थीं। काफी कड़ी नजर रहती थी उन पर, लेकिन वो मानक मुद्रा का जोखिम नहीं उठा पाए। हालांकि खुद शासक अभी भी कई तरह का बिना मुद्रा का अवैध कारोबार करने में भी लिप्त रहे, आप हमें ये दो बदले में ये ले जाओ। जहांगीर के जमाने में एक कहावत वड़ी मशहूर थी, इंडिया से दास, इथोपिया से घोड़े। जहांगीर अपने सैनिकों को चुपचाप खेतों में भेज देता था, जो भी भारतीय मिलता था, उसको पिंजरों में भरकर बंदरगाहों पर भेज दिया जाता था। उनको दासों के तौर पर अफ्रीकी और अरब देशों में भेज दिया जाता था। इथोपिया से उन दासों के बदल अच्छी किस्म के घोड़े जहांगीर को मिलते थे। इस व्यापार में ना मुद्रा इस्तेमाल होती थी और ना इसका कोई रिकॉर्ड रहता था। जहांगीर ने अपनी आकृति वाला सिक्का शुरू किया तो शाहजहां को दाम और रुपए के बीच का सिक्का आना शुरू करने का श्रेय जाता है। एक रुपए में चालीस दास और सोलह आने होते थे। तो औरंगजेब ने अकबर के कलमा और जहांगीर के आकृति गुदवाने की प्रथा बंद करवा दी बल्कि सिक्कों पर पोइट्री गुदवाई।

हालांकि भारत के मुद्रा इतिहास में सबसे ज्यादा असर डाला शेरशाह सूरी ने, उसके चलाए चांदी के सिक्के रुपया को ना केवल मुगलों ने अपनाय़ा, बल्कि अंग्रेजों ने और आजादी के बाद भी सरकारों ने अपना लिया। जबकि सातवाहनों को शीशे के सिक्कों के लिए इतिहास में जाना जाता है। क्षेत्रीय शासकों में विजयनगर का पगोड़ा, हैदरअली का हारा गौरी और गुजरात का गधैया सिक्के भी चर्चा में रहे हैं।

अंग्रेजों ने भी जो सिक्के जारी किए उनमें अपने महाराज, महारानी की आकृति वाले सिक्के खूब चलाए। गुप्त शासकों के सिक्के भी शिकार करते हुए, संगीत यंत्र बजाते हुए या राजा के साथ रानी के सिक्कों की भरमार रही। जिससे उनकी रुचियां जानने को मिलीं। अंग्रेजी राज में बैंक ऑफ बंगाल और बैंक ऑफ बॉम्बे प्रेजीडेंसी ने मानक कागजी मुद्रा जारी की, जिसमें पांच रुपए से लेकर दस हजार तक के नोट जारी किए। 1935 में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया बनने के बाद भी वो दस हजार के नोट चलते रहे। एक बार 1954 में भारत सरकार ने भी दस हजार का नोट जारी किया। आज की पब्लिक के लिए दस हजार का नोट वाकई में चौंकाने वाली बात होगी।

इनमें से कई तरह के नोट और सिक्के अब बंद हो चुके हैं, या तो सिक्का इकट्ठा करने के शौकीनों के पास मिलेगें या फिर म्यूजिम्स में। लेकिन पुराने सिक्कों या नोटों के जरिए भी कमाई हो सकती है, ये जानने के लिए एक बार जाकर देखिए ईबे, अमेजन, क्विकर, ओएलएक्स और स्नेपडील जैसी शॉपिंग वेबसाइट्स पर आपको गुप्त काल से लेकर सल्तनतकाल और मुगलकाल के साथ साथ आजाद भारत का हर वो सिक्का या करेंसी नोट जो बंद हो चुका है, खरीदने के लए उपलब्ध है। ये अलग बात है कि कीमत कई गुना ज्यादा होगी, लेकिन शौक के आगे पैसों की बिसात कहां। पांच नवंबर को जारी होने जा रहे सिक्के के बारे में भी माना जा रहा है कि पचास हजार सोने

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