आइये सीखिए - मन को कैसे वश करे (श्रीकृष्ण वचन)... How to control our mind by ShriKrishna
आइये सीखिए - मन को कैसे वश करे (श्रीकृष्ण वचन)
How to control our mind by ShriKrishna
मन को वश करने के उसपे दो तलवारो से प्रहार करना पड़ता है.
एक तलवार अभ्यास की है, और दूसरी तलवार है वैराग्य की.
अभ्यास का अर्थ है निरंतर अभ्यास - मन को एक काम में लगा दो, वो वहा से भागेगा तो उसे पकड़ कर लाओ , वह फिर भागेगा, उसे फिर पकड़ो, ऐसा बार बार करना पड़ेगा--- जैसे घोड़े का नवजात शिशु एक क्षण के लिए भी स्थिर नहीं रहता----क्षण क्षण में इधर उधर भटकता रहता है, उसी प्रकार मन भी क्षण क्षण इधर उधर भटकता रहता है. एक चंचल घोङे की तरहा मन भी बड़ा चंचल होता है.
और ऐसे चंचल मन को काबू करना उतना ही कठिन है, जैसे किसे मुजोड़ घोड़े को काबू करना। ऐसे घोड़े को काबू करने में सवार जितना जोर लगता है, घोडा उतना ही विरोध करता है...... और बार बार सवार को ही गिरा देता है.
परन्तु यदि सवार दृढ़ संकल्प हो तो अंत में वह उस बेलगाम घोड़े पर सवार हो जाता है.
बस फिर वही घोडा सवार के इशारे पे चलता है.
उसी प्रकार मन को भी नियंत्रण की रस्सी में बांधकर बार बार अपने रास्ते पे लाया जाता है.... तो अंत में वह अपने स्वामी का कहना मानना शुरू कर देता है.
इसी को कहते है अभ्यास की तलवार चलाना।
वैराग्य की तलवार की आवश्यक्यता इस लिए है.... की मन एक बार ठीक रस्ते पे आ जाने के बाद मन फिर से उलटे रास्ते पे न चला जाये। क्युकी उलटे रस्ते पर इन्द्रिये के विषय उसे सदा ही आकर्षित करते रहेंगे.
मिथ्या, विलास, भोग और काम की तृष्णा उसे फिर अपनी और खींच सकती है.
इसलिए मन को ये समझना जरुरी है की वह सारे विषय, भोग.... मिथ्या है, आसार है.
योग माया के द्वार पर उत्पन्न होने वाले मोह का भ्रम है, मन इस सत्य को समझ लेगा तो उसे विषयो से मोह नहीं रहेगा बल्कि उसे वैराग्य हो जाएगा।
और यही वैराग्य का काम है की विषयो की मोह को काट के मान को सन्यासी बना देती है.
Thank you.
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